यह घटना उस समय की है जब गौतम बुद्ध के पास कोई भी भिक्षु बनने की इच्छा से आता था. चाहे वह व्यक्ति किसी भी समुदाय से हो अथवा कोई विशेष व्यक्ति ही क्यों न. गौतम बुद्ध द्वारा सभी को भिक्षु बनने की दीक्षा दी जाती थी. बुद्ध के द्वारा बनाये गये सभी भिक्षुको के लिए एक नियम को पालन आवश्यक था की जो कोई भी भिक्षु बनेगा वह मांस कभी नहीं खाएंगा.
एक दिन की बात है जब दो भिक्षु शहर में भिक्षा लेने के लिए गए थे. किन्तु भाग्यवश उन्हें उस दिन भिक्षा में कुछ नहीं मिला था. सभी भिक्षुओं का प्रतिदिन का यह नियम था कि जो भी कुछ उन्हें भिक्षा में मिलता था, भिक्षु वह सब कुछ भगवान बुद्ध के चरणों में अर्पित कर देते थे. बाद में भगवान बुद्ध सभी भिक्षुओं को मिली भिक्षा बांट देते थे.
जब उन भिक्षुओं को भिक्षा नही मिली तो वे वापस लौट रहे थे तो आते समय राह में उड़ते हुए एक कौवे के पंजों से छूटकर मांस का टुकड़ा सीधा आकर भिक्षु के पात्र में गिर गया था. भिक्षु महात्मा गौतम के पास आए और उन्हें पूरा वृतांत बताया, और कहा कि ‘देखिए, आपने हमसे कहा था कि हमें मांस नहीं खाना चाहिए, हमें उस बात से कोई ऐतराज नहीं है किन्तु आपने हमें यह भी कहा था कि भिक्षु को यह कभी नहीं देखना चाहिए कि वह क्या खा रहा है बल्कि जो भी मिले, उसे सहर्ष खा लेना चाहिए.’
भिक्षु ने आगे बुद्ध से कहा की हमारे पात्र में मांस का टुकडा है. यदि हम मांस खाते हैं, तो एक नियम की मांस नही खाना चाहिए तोड़ेंगे और नहीं खाते तो दूसरा नियम जो भी भिक्षा में मिले खाना चाहिए तोड़ेंगे. अब हमें क्या करना चाहिए?’
गौतम बुद्ध ने काफी सोच विचार करके यह कहां कि अगले दो-ढाई हजार सालों तक किसी और कौवे का किसी दूसरे भिक्षु के पात्र में मांस का टुकड़ा गिराने की संभावना है क्या? करोड़ों में एक मौका ऐसा हो भी सकता है.
भगवान बुद्ध में कहा कहा, ‘तुम उस मांस को खा लो, फेंको नहीं, क्योंकि क्योंकि यदि तुम उसे फेंकोगे तो तुम्हारा उससे और अधिक जुड़ाव होगा जो तुम्हारे मन को विचलित करता रहेगा. इसीलिए तुम उसे कहा लो इससे तुम्हारा मन विचलित नही होगा.
Aaj tumne mere man ki baat kaha di
ReplyDeleteJay bheem namo buddhay
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